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प्रेस की स्वतंत्रता पर कुछ अपरिहार्य प्रश्न

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 विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर पत्रकारिता से जुडे संस्थानों और पत्रकारों के बीच प्रेस की आजादी को लेकर मंथन चल रहा है,तरह-तरह की बातें हो रही हैं और भारत में मोदी मीडिया,गोदी मीडिया जैसे संबोधनों की सार्थकता और निरर्थकता पर भी बात हो रही है। पूरा ध्यान इस बात पर है कि प्रेस की आजादी को लेकर सरकारों की सोच और दृष्टिकोण क्या है,यह बात है भी ऐसी कि इस पर ध्यान दिया भी जाना चाहिए, लेकिन प्रश्न यह है कि भारत में पत्रकारिता को लेकर आज के संदर्भों में क्या यह एकमात्र प्रश्न है? भारत में प्रेस की स्वतंत्रता क्या पूर्ण रूप से इसी बात से निर्धारित होती है कि सरकार की कड़ाई या उदारता प्रेस के प्रति कितनी है? क्या दूसरे कोई कारण नहीं हैं जो प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करते हों ? भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को जो बातें वस्तुतः प्रभावित करती हैं उन पर जब तक हम विचार नहीं करेंगे तब तक यह विमर्श अर्थहीन है, बेमानी है और बेईमानी भी।  कुलदीप नैयर की बात आपकी स्मृति में आती है? आपातकाल को लेकर उन्होंने तत्तकालीन सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल से बात की तो शुक्ल ने उनसे जो कहा वह प्रेस की स्वतंत्र